आज अपने दिल की भी सुन के देख लें?
कौन हैं ये भाई साहब? क्या चाहते हैं?
किस प्यार के दरिया में डूबे चले जाना चाहते हैं?
किन चीज़ों से कतराते हैं? क्यों छुपे बैठे हैं ये?
किन गलियों में मंडराते यहाँ पहौंचें हैं?
किधर को इन्हें जाना है अब? किधर को अब ये जाएँगे?
कौन से लब्ज़ इनकी ज़ुबान छोड़ फड़फड़ायेंगे?
क्या ज़रिया हैं ये?
क्या दस्तूर है इनका? और किस दस्तक के इंतज़ार में हैं ये?
कब चुप्पी गले लगी थी इनके?
कब वो पल दो पल के लिए रिहा इन्हें कर जाएगी?
वो रात भी क्या आएगी जब चाँद और तारों के नीचे एक सच का बीज बो जाएगी?